"नई उम्मीदों की शुरुआत"

 

"नई उम्मीदों की शुरुआत"  


कभी-कभी ऐसा लगता है कि ऑनलाइन दुनिया, इंटरनेट और मोबाइल जैसी चीजें हमारी जिंदगी को मुसीबतों में डाल रही हैं, लेकिन अगर हम सचमुच गौर करें, तो पाएंगे कि इन सभी चीजों ने हमारी जिंदगी को आसान भी बना दिया है। जैसा कि कहते हैं, "हर चीज में अच्छाई और बुराई दोनों होते हैं," और हमें हमेशा अच्छाई को अपनाना चाहिए। यही संदेश देती है आज की मेरी यह यह कहानी।

यह कहानी दिव्या और रुपेश की है। रुपेश एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था, और उसकी अच्छी खासी सैलरी से घर का खर्च आराम से चल रहा था। वह और उसकी पत्नी दिव्या अपने बच्चों के साथ खुशहाल जीवन जी रहे थे। लेकिन फिर एक दिन उनका खुशहाल संसार बिखर गया।

एक शाम, जब रुपेश ऑफिस से घर लौट रहा था, एक भयानक एक्सीडेंट हुआ और उसे अपनी दोनों टांगें गंवानी पड़ीं। इस हादसे ने न केवल रुपेश, बल्कि पूरे परिवार की जिंदगी को बदल कर रख दिया। रुपेश की प्राइवेट नौकरी थी, जिसमें ज्यादा पैसे नहीं मिलते थे। उसने LIC की पॉलिसी जरूर ली थी, लेकिन वह पैसा भी उसके इलाज और दवाओं पर खर्च हो गया। अब दिव्या के पास अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए कोई विकल्प नहीं था।

दिव्या ग्रेजुएट थी, और उसने अपने परिवार की मदद के लिए नौकरी ढूंढने की कोशिश शुरू की। बेरोजगारी के इस दौर में नौकरी मिलना आसान नहीं था, लेकिन दिव्या ने हार नहीं मानी। बहुत संघर्षों के बाद, उसने एक नौकरी पा ली। हालांकि, उस नौकरी से घर का खर्च मुश्किल से चलता था और जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ गया था।

एक दिन, दिव्या की बेटी अनुषा ने कहा, "मम्मी, क्या मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ा सकती हूँ? इससे थोड़ा पैसा मिल जाएगा और आपकी मदद भी हो जाएगी।" लेकिन दिव्या ने तुरंत नकारते हुए कहा, "नहीं, तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। मैं सब देख लूंगी।"

लेकिन आखिर कब तक? दिव्या की तबियत खराब होने लगी। ज्यादा काम और मानसिक तनाव के कारण उसकी सेहत पर असर पड़ने लगा। एक दिन उसकी बेटी ने फिर एक समाधान पेश किया, "मम्मी, आप ऐसे बीमार रहोगी, तो हमें तो सड़कों पर आना पड़ेगा। क्यों न हम ऑनलाइन कोई काम शुरू करें?"

दिव्या ने हताश होकर कहा, "ऑनलाइन काम? आजकल तो बहुत ठगी हो रही है। हमें क्या करना चाहिए?"

अनुषा ने बड़े धैर्य से समझाया, "मम्मी, सही तरीके से और सतर्कता से काम किया जाए तो कोई भी काम अच्छा हो सकता है। आप तो खाना बहुत अच्छा बनाती हो। क्यों न हम घर से खाना बना कर ऑनलाइन डिलीवरी पर भेजें? केक, पेस्ट्री और अन्य खाने-पीने की चीजें हम ऑनलाइन बेच सकते हैं। इस तरह से मैं भी अपनी पढ़ाई के साथ-साथ आपकी मदद कर पाऊँगी।"

दिव्या का मन नहीं था, लेकिन अपनी बेटी की बातों को सोचते हुए उसने अनमने ढंग से हामी भर दी। फिर अनुषा ने Zomato और Swiggy पर रजिस्ट्रेशन कर दिया। शुरुआत में आर्डर कम आए, लेकिन धीरे-धीरे, अच्छे स्वाद और क्वालिटी के कारण आर्डर बढ़ने लगे। दिव्या और अनुषा ने मिलकर ऑनलाइन डिलीवरी का काम शुरू किया और घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा। अब दिव्या को बाहर काम पर जाने की जरूरत नहीं थी, और उसने घर में दो हेल्पर भी रख लिए थे।

दिव्या और अनुषा ने साबित किया कि डिजिटल युग ने बहुतों के लिए नई संभावनाएं खोली हैं। यह सच है कि हर बदलाव के साथ कुछ जोखिम जुड़ा होता है, लेकिन सतर्कता और समझदारी से किया गया काम कभी विफल नहीं होता।

इस कहानी का संदेश बहुत स्पष्ट है: "अच्छाई और बुराई दोनों ही होते हैं, लेकिन हमें हमेशा अच्छाई को चुनना चाहिए।" दिव्या और उसकी बेटी ने अपने कठिन समय में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का सही उपयोग किया और न केवल अपनी जिंदगी को बेहतर बनाया, बल्कि हमें यह सिखाया कि बदलाव के साथ कदम मिलाकर चलना और संघर्ष से सफलता की ओर बढ़ना, यही सच्ची जीत है।

लेखिका- अल्पना सिंह 











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