"लिखना मेरी आदत है,
इसलिए मेरे शब्दों पर ध्यान दीजिये, उनकी मंशा पर नहीं।
कागज़ और कलम से मुझे मोहब्बत है।
शब्दों का ताना-बाना बुन लेती हूँ मैं—
जैसे जादू हो कोई।
ख्वाबों को हकीकत में ढालना,
और हकीकत को ख्वाब बना देना मुझे आता है।
कल्पनाओं को कागज़ पर उकेरना—
मानो ख्वाब ज़मीन पर उतर आए हों।
कभी-कभी, हकीकत को कल्पना में और
कल्पना को हकीकत में ढाल देती हूँ मैं।
खुली आँखों से ख्वाब देखने की आदत है मुझे।
जब लिखने बैठती हूँ,
तो बैठी-बैठी हरी-भरी वादियों की सैर कर आती हूँ।
कभी समंदर की गहराइयों में बसी
एक खूबसूरत दुनिया की झलक पा जाती हूँ।
तो कभी फूलों पर मंडराती परियों की दुनिया में खो जाती हूँ।
मेरी कुर्सी मेरी टाइम मशीन है—
जिस पर बैठकर, कभी सदियों पुराने प्रेमी युगलों से मिलने चली जाती हूँ,
तो कभी आने वाले समय की दुनिया देख आती हूँ।
कल्पनाओं के समुंदर में गोते लगाना,
और वहाँ से शब्दों के मोती चुनकर
कहानियों और कविताओं की माला बनाना—
यही मेरी आदत है।
मेरे शब्दों को पढ़िए, महसूस कीजिये।
उनके पीछे की मंशा को मत टटोला कीजिये।
कभी ये कल्पना होते हैं,
कभी हकीकत।
क्योंकि लिखना मेरी आदत है।"
– अल्पना सिंह
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