"आज की प्रेम कहानी?"

 

"आज की प्रेम कहानी?"    

किसी ने मुझसे कहा "आज के समय की लव स्टोरी लिख दो।"
मैं सोच में पड़ गई।
कई कहानियाँ लिखीं, लेकिन... अंत समझ नहीं आया।

आजकल दिल से दिल मिलने में देर नहीं लगती,
पहली नज़र में प्यार भी हो जाता है,
और इज़हार भी चंद मिनटों में।
लेकिन जितनी जल्दी प्यार होता है,
उतनी ही जल्दी उसका ‘The End’ भी आ जाता है।

अगर किसी तरह रिश्ता शादी तक पहुँच भी जाए,
तो अधिकतर प्रेम विवाह का अंत तलाक पर होता है।

लेकिन...
बिछड़ने से कोई समस्या नहीं है,
क्योंकि पहले भी बहुत सी प्रेम कहानियाँ अधूरी ही रहीं।
फर्क बस इतना है कि
उन कहानियों में एक खूबसूरत एहसास छुपा होता था।
एक ऐसी भीनी-सी खुशबू
जो सालों बाद भी दिल को भिगो देती थी।

मिलन हुआ या नहीं,
रिश्तों में एक वफ़ादारी  जरूर होती थी,
आँखों में वही पुरानी चाहत, वही इंतज़ार

बस...
एक झलक देखने की ललक ही
पूरी प्रेम कहानी बन जाती थी।

हमारे वक़्त का प्यार
आँखों से शुरू होता था,
ख़तों में पनपता था,
और तन्हाई में महकता था।

अब प्यार क्लिक से शुरू होता है,
चैट में चटपट बंधता है,
और कुछ ही दिनों में स्क्रीनशॉट्स में बिखर जाता है।

पहले प्यार
लबों तक आने में कई रातें लेता था
चाँद से बातें, सितारों की सैर,
अधूरे ख़्वाबों की मुस्कानें
तब बनती थी एक प्रेम कहानी।

प्यार तब इंतज़ार का नाम था।
एक नज़र जो दिल में उतर जाती थी,
बात कहने से पहले ही
कागज़ पर बिखर जाती थी।

वो खत
जो बिना बोले बहुत कुछ कह जाते थे।
वो गुलाब
जो डायरी में सहेज कर रखा जाता था,
और जिसकी ख़ुशबू सालों बाद भी
मन को भीगा देती थी।

तब प्यार में इज़हार से पहले तड़प होती थी,
और उस तड़प में सच्चाई

और आज?

प्रोफाइल देखी, रिक्वेस्ट भेजी, चैट शुरू।
जल्दी मिलना, जल्दी जुड़ना,
और उतनी ही जल्दी...
सब कुछ खत्म।

न अब वो दिल की बेचैनी है,
न इज़हार की घबराहट।

न इंतज़ार की रातें हैं,
न मिलन की सुबहें।

हर चीज़ बस फास्ट फॉरवर्ड हो गई है।

प्यार अब एक फेसबुक स्टेटस,
इंस्टा रील,
या व्हाट्सएप चैट बनकर रह गया है।

शब्द तो हैं,
पर एहसास नहीं।
साथ तो है,
पर आत्मा नहीं।

इश्क़, मुहब्बत, प्यार
ये सब ज़िंदा हैं...
पर उन्हें महसूस  करने का
न वक्त है,
न संयम।

मैं जब भी कोई प्रेम कहानी लिखने बैठती हूँ,
वो क्राइम पेट्रोल की स्क्रिप्ट बन जाती है।
कहानी के आख़िरी पन्ने में
प्यार की जगह सस्पेंस, धोखा या हत्या आ जाती है।

पता नहीं...
मैं गुमराह हो गई हूँ या मेरी कलम।

मेरी कलम बार-बार वही पुराने शब्द दोहराती है।

काश...

काश कोई फिर से वो ख़त लिखे जिसमें लिखा हो
"फूल तुम्हें भेजा है ख़त में, फूल नहीं... मेरा दिल है..."

काश कोई आज भी गुलाब को गुलाब  की तरह दे,
ना कि कंटेंट  की तरह इस्तेमाल करे।

मुझे लगता है
आज के डिजिटल दौर में प्यार ज़िंदा तो है,
लेकिन उसे महसूस करने वाला दिल कम हो गए हैं।
ना किसी के पास इंतज़ार  करने का संयम है,
ना बेकरारी  की कशिश।

प्रेम कहानी वो होती है
जहाँ मिलन से ज़्यादा
वफ़ा निभाने की चाहत  हो।
जहाँ इज़हार से पहले
इंतज़ार का स्वाद  हो।
जहाँ मुलाक़ातों से पहले
ख़तों की ख़ुशबू  हो।

तब बनती है
एक सच्ची... और अच्छी...
प्रेम कहानी।

आप भी कमेंट में अपनी राय अवश्य दे,

लेखिका- अल्पना सिंह

 

 

 

 

 

 

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