प्यार की परछाईं – एक अधूरी प्रेम कहानी का सुंदर मोड़

 

प्यार की परछाईं एक अधूरी प्रेम कहानी का सुंदर मोड़


वीराज और मीरा... एक ही स्कूल में पढ़ते थे। वीराज मन ही मन मीरा को चाहता था, लेकिन कभी अपना प्रेम कह नहीं सका। वक़्त बीता, राहें बदल गईं। मीरा की शादी हो गई, उसके दो बच्चे हुए। वीराज की भी शादी ज्योति से हुई, और उनका एक बेटा है आयांश।

बरसों बाद, गाँव के मेले में वीराज की निगाह मीरा पर पड़ी।

वीराज –

सालों बाद आज गाँव के मेले में उसे देखा। पहले तो पहचान ही नहीं पाया, फिर अपने आप से ही कहा—"अरे, ये तो मीरा है!"

थोड़ी-सी भारी हो गई थी वो, चेहरे पर उम्र की हल्की लकीरें उभर आई थीं, और बालों में भी सफेदी की कुछ लटें झाँक रही थीं। लेकिन... न जाने क्यों, उसे देखकर आज भी दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

और हद तो तब हो गई जब वो मेरे बिलकुल पास से गुज़री, थोड़ा आगे बढ़ी, फिर पलटी, और मुझे देखकर मुस्कुरा दी। उसकी मुस्कान... जैसे कोई बिजली दिल पर गिर गई हो।

मन उड़ता हुआ चला गया उन पुराने दिनों में, जब हम दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे। मैं एक बेंच आगे बैठता था, वो एक बेंच पीछे। शायद प्यार वक़्त से नहीं बंधता... वो बस एहसास में जीता हैआज भी, कल भी।

मैं अक्सर उसे चुपचाप देखा करता था। जब वो स्कूल जाती थी, जब पानी भरने जाती थी, जब सहेलियों के साथ खिलखिलाती थीहर पल मेरी नजरें उसे ही ढूँढा करती थीं।

मैंने महसूस किया था कि वो भी मुझे देखती थी... चोरी-चुपके, चुपचाप। शायद उसके दिल में भी कुछ-कुछ होता होगा मेरे लिए... लेकिन न मेरी हिम्मत हुई कुछ कहने की, न उसने कभी कुछ कहा।

हमारी खामोश निगाहों के बीच कुछ अनकहे एहसास थे, जो जुबां तक कभी नहीं पहुँच पाए।

एक दिन अचानक दोस्तों से खबर मिली कि उसकी शादी तय हो गई है। दिल जैसे थम-सा गया। कुछ पल को साँसें रुक गईं।

लेकिन मैं कर ही क्या सकता था?                                                             

शाम को मैं गाँव के बाहर आम के बगीचे में खड़ा रहाबस इसलिए कि बारात लौटते वक्त उसकी एक झलक मिल जाए। रात के अंधेरे में जब बारात की गाड़ियाँ लौटीं, मैंने उसे देखाएक गाड़ी में लाल साड़ी में लिपटी, घूँघट में सिमटी हुई बैठी थी। उसके बगल में एक सजीला युवक दूल्हे की पोशाक में था। मैं समझ गयाअब वो मेरी नहीं रही। यही हमारी आख़िरी मुलाकात थी... या कहूँ, यही आख़िरी बार था जब मैंने उसे देखा।

उसके बाद ना मैंने उसे देखा, ना उसने मुझे। वो इस गाँव से दूर किसी शहर चली गई, और मैं उसी गाँव में रह गयाजहाँ की गलियाँ, पगडंडियाँ, स्कूल, खेल और खलिहान सब वैसे के वैसे थे... बस, उन रास्तों पर चलने वाली वो नहीं थी।

वक़्त बीतता गया। साल दर साल गुज़रते गए। पर उसका चेहरा... उसकी आँखें... उसकी हँसीसब मेरे ज़हन में जस की तस बनी रहीं।

और आज... इतने सालों बाद, उसी मेले में वो अचानक दिख गई। भीड़ में एक पल के लिए उसकी झलक मिली, और दिल फिर वैसे ही धड़क उठा जैसे पहले धड़कता था।

मैं खुद को रोक न सका। अनजाने ही मेरे कदम उसके पीछे चल पड़े।

मैं कुछ ही दूर चला था कि देखा, तीन मनचले लड़के भी उसी दिशा में बढ़ रहे हैं। उनके इरादे ठीक नहीं लग रहे थे। तभी देखा, मीरा के साथ एक 20-21 साल की लड़की भी चल रही थीशायद उसकी बेटी। वो लड़की हूबहू मीरा की परछाईं लग रही थी, बस थोड़ा मॉडर्न अंदाज़ में।

अचानक वे तीनों छोकरें आगे बढ़कर उस लड़की का रास्ता रोक लेते हैं। वह घबरा जाती है। मीरा झट से अपनी बेटी को अपने पीछे छुपा लेती है।

मैं कुछ पल रुका... फिर ज़ोर से चिल्लाया—“ए! हटो वहाँ से!

तीनों लड़के चौंक गए। मेरी ओर देखा। शायद उन्होंने मुझे पहचान लियाआसपास के ही गाँवों के थे। मेरे गुस्से की पहचान उन्हें पहले से थी।

मैं उनकी ओर बढ़ा और वे भाग खड़े हुए। मैं उन्हें दौड़ाकर पकड़ना चाहता था, लेकिन तभी मीरा की आवाज़ सुनाई दी—“छोड़ दीजिए... जाने दीजिए। मैं पुलिस में रिपोर्ट कर दूँगी।

मीरा की आवाज सुन कर मैं रुक गया। और पलट कर मीरा के पास जा कर बोला—“पुलिस की ज़रूरत नहीं है। मैं इन तीनों के घरवालों को जानता हूँ। आज ही इनकी करतूत उनके सामने रख दूँगा।

मीरा कुछ पल शांत रही। फिर उसकी आँखों में एक सुकून झलकने लगा। उसने मुझे गौर से देखा... जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो। फिर धीमे से बोली—“आप... विराज हैं न? बलरामपुर गाँव वाले...?”

मैं मुस्कुराया, हल्के से सिर हिलाया—“हाँ...

हमारी आँखें मिलीं। वक्त जैसे वहीं ठहर गया। वो एक झलक... उम्र भर के इंतज़ार जैसी लगी।

मैंने उसे ध्यान से देखा। माँग की लकीर, कलाई की चूड़ियाँ और आँखों की गहराई को पढ़ने की कोशिश की। फिर धीरे से पूछा—“पति की मृत्यु कैसे हुई?”

मीरा ने धीमे स्वर में कहा—“मेरे पति फौज में थे। देश की सेवा करते हुए एक दिन खबर आई कि वे शहीद हो गए। अब उन्हीं की पेंशन से घर चलता है। जो पैसे मिले, उसी से सोच रही हूँ कि अपनी बेटी की शादी कर दूँ।

मीरा ने अपनी बेटी को आगे करते हुए कहा—“ये मेरी बेटी सिया है।

विराज ने एक नजर सिया पर डाली और फिर बोले—“तो क्या कोई लड़का देखा है?”

मीरा ने मायूस होकर कहा—“बड़े भैया ने एक लड़का बताया था। उसे ही देखने आई थी, पर लड़का मुझे पसंद नहीं आया। मेरे मना करने पर भैया भी नाराज़ हो गए। अब आप ही बताइए विराज, क्या सिर्फ इसलिए कि मैं विधवा हूँ, अपनी बेटी की शादी किसी भी लड़के से कर दूँ? मेरी बेटी ग्रेजुएट है।

लेकिन वीराज ये समाज... विधवा स्त्री को आज भी कमज़ोर समझता है। मेरे रिश्तेदार मेरे हालात का फ़ायदा उठाकर जल्दबाज़ी में सिया की शादी करवाना चाहते हैं।

विराज थोड़ी देर सोचते रहे, फिर बोले—“मीरा, यहीं पास में मेरा गाँव है। चलो, मेरे घर चलकर बात करते हैं।

मीरा अपनी बेटी सिया के साथ विराज के घर आई। वहाँ विराज ने अपनी पत्नी ज्योति से मीरा और सिया का परिचय कराया। ज्योति मीरा और सिया से मिलकर बहुत खुश हुईं और दोनों का आत्मीय स्वागत किया। उस रात मीरा और सिया को उन्होंने अपने घर पर ही रोक लिया।

सुबह जब मीरा जागी, तो एक स्मार्ट, हैंडसम नवयुवक ने झुककर मीरा के पैर छुए। मीरा आश्चर्य से उसे देखने लगीकरीब 22-23 साल का युवक था। तभी विराज मुस्कुराते हुए कमरे में आए और बोले—“मीरा, ये मेरा बेटा आयांश है। इसने इस साल SSC कंपटीशन पास किया है। अगर तुम चाहो, तो मैं अपनी बहू के रूप में तुम्हारी बेटी को अपने घर लाना चाहता हूँ। और हाँ, दहेज की कोई ज़रूरत नहीं है।

मीरा आयांश के चेहरे को देखने लगी। उसकी आँखों में प्रश्न थे। विराज ने उसकी उलझन समझ ली और मुस्कुराकर बोले—“मैंने आयांश से बात कर ली है। उसे सिया पसंद है और उसे इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं। लेकिन तुम एक बार सिया से ज़रूर पूछ लो। शादी उसकी मरज़ी से ही होगी।

सिया और आयांश की बातचीत होती है। दोनों एक-दूसरे की समझदारी और मानवीय सोच से प्रभावित होते हैं। अंततः सिया और आयांश भी एक दुसरे से विवाह करने के लिए सहमत हो जाते हैं।

मीरा भावुक हो गई और रुंधे गले से बोली—“विराज, आपने तो मेरे मन का बोझ ही हल्का कर दिया। बस, मुझे अपने बेटे को भी ये बात बतानी है।

विराज ने कहा—“उसे यहीं बुला लो। वो भी आयांश से मिल ले।

मीरा ने अपने बेटे को फ़ोन कर बुला लिया। सिया के भाई को भी आयांश बहुत पसंद आया।

कुछ ही दिनों बाद, धूमधाम से आयांश और सिया का विवाह हो गया। सिया दुल्हन बनकर विराज के घर आ गई।

सिया को अपने घर की बहू के रूप में देखकर विराज के चेहरे पर सुकून और गर्व था। वीराज को ऐसा लगा जैसे आज उनका अधूरा प्रेम पूर्ण हो गया। वीराज अपनी अधूरी प्रेम की परछाईं को घर की लक्ष्मी बनाकर पाया था।

वहीं मीरा के चेहरे पर भी संतोष थाअब उसकी बेटी एक अच्छे घर की बहू बन गई थी, और सुरक्षित भी।

समाप्त

लेखिका- अल्पना सिंह 


 


Comments

Popular Posts