"पिया बसंती रे"
पिया बसंती रे
कुछ अलग थी मेरी और उनकी प्रीत की दास्तान,
उनके अमिट प्रेम और मेरे इंतज़ार की पहचान।
सावन की पहली फुहार की तरह,
मिट्टी की सोंधी खुशबू की तरह,
मंदिर में बजती घंटी की गूँज की तरह,
अधखिली कलियों की नाज़ुक मुस्कान की तरह।
कुछ एहसास —
जो नज़रों ने नज़रों से चुपचाप कह दिए थे।
कुछ जज़्बात —
जो दिल की धड़कनों ने बिना शब्दों के सुन लिए थे।
कुछ भाव —
जो बिना छुए ही महका गए थे।
कुछ पल —
जो खामोश रहकर भी बहुत कुछ कह गए थे।
यही थी मेरी प्रीत की कहानी,
मेरे अंतहीन इंतज़ार की कहानी,
मेरे और मेरे पिया की बसंती कहानी।
कुछ अलग थी...
सावन की पहली फुहार-सी, अधखिली कलियों-सी,
एक इंतज़ार... जो अब भी साँसों में बाकी है।
अल्पना सिंह
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