पहली कक्षा और शिक्षक बनने का अनुभव
पहली कक्षा और शिक्षक बनने का अनुभव
जीवन में कुछ अनुभव ऐसे होते हैं जो हमारी सोच, व्यक्तित्व और पहचान को हमेशा के लिए बदल देते हैं। मेपहली कक्षा और शिक्षक बनने का अनुभवरे जीवन में ऐसा अनुभव तब आया जब मैंने पहली बार शिक्षक के रूप में कक्षा संभाली।
उस समय मेरी उम्र मात्र 19 वर्ष थी। ISC की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मैंने कंप्यूटर साइंस का एक वर्षीय कोर्स किया था। वह दौर था जब कंप्यूटर सीखना एक नया आकर्षण था और हर कोई इसकी ओर खिंचा चला आता था। कोर्स पूरा होते ही मुझे एक विद्यालय से बच्चों को कंप्यूटर सिखाने का प्रस्ताव मिला। इतनी कम उम्र में यह अवसर मेरे लिए किसी सपने के सच होने जैसा था।
मैंने उत्साह से यह जिम्मेदारी स्वीकार की और स्कूल में अध्यापन शुरू कर दिया। छोटे बच्चे मुझे बेहद प्यार करते थे। उनकी जिज्ञासा, उनकी मासूमियत और सीखने की ललक ने मेरे भीतर एक अलग ही ऊर्जा भर दी। उन्हें सँभालने में मुझे कभी कठिनाई नहीं हुई।
लेकिन जब बड़ी कक्षाओं के छात्रों से सामना हुआ, तो यह मेरे लिए एक नई चुनौती थी। कुछ बड़े लड़के मुझे हल्के में लेने लगे, कोई मज़ाक करता, तो कोई प्रभावित करने की कोशिश करता। एक छात्र ने तो मुझे पटाने तक की बातें कर दीं। इतनी छोटी उम्र में इस स्थिति से निपटना आसान नहीं था।
मगर मैंने तय किया कि शिक्षक की गरिमा और सम्मान को कभी आंच नहीं आने दूँगी। मैंने अपने स्वभाव में कड़ाई लाना शुरू किया। धीरे-धीरे मेरी छवि एक सख़्त, अनुशासित और कभी-कभी खड़ूस अध्यापिका की बन गई। बच्चे मुझसे डरने लगे, लेकिन सम्मान भी करने लगे।
इन दस वर्षों की यात्रा में मैंने केवल बच्चों को ही नहीं, बल्कि अपनी सहकर्मी लड़कियों को भी संबल दिया। कई बार बड़े लड़कों की शरारतों से वे असहज हो जाती थीं, तो मैं उनके लिए ढाल बनकर खड़ी हो जाती। मुझे लगता है कि एक शिक्षक का यह भी कर्तव्य है कि वह अपने साथियों और विद्यार्थियों को सुरक्षित माहौल प्रदान करे।
आज जब पीछे मुड़कर देखती हूँ तो लगता है कि मेरी पहली कक्षा ही मेरी सबसे बड़ी परीक्षा थी। वही दिन थे, जिन्होंने मुझे सिखाया कि शिक्षक का कार्य केवल पाठ पढ़ाना नहीं है, बल्कि बच्चों के जीवन में एक ऐसी छाप छोड़ना है, जो उन्हें अनुशासन, सम्मान और संस्कार की राह दिखाए।
वह अनुभव मेरे जीवन की सबसे बड़ी पूँजी है—जिसने मुझे न सिर्फ एक अध्यापिका बनाया, बल्कि एक मज़बूत और आत्मनिर्भर इंसान भी।
लेखिका- अल्पना सिंह
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