“वो वक्त जो लौटकर कभी नहीं आता”

 


“वो वक्त जो लौटकर कभी नहीं आता”

पति–पत्नी के रिश्ते की सच्चाई 

जब भूख जोर की लगी हो और सामने तरह-तरह के पकवान सजे हों,

फिर भी खाने की इजाज़त न मिले,


तो भूख थोड़ी-थोड़ी कर के मरने लगती है।

कभी-कभी कोई रूखा-सूखा भी मिल जाए तो

वही पेट भर देता है।

और जब पेट भर जाए,

फिर चाहे कितने भी स्वादिष्ट पकवान सामने हों,

उनका कोई मोल नहीं रह जाता।


यही तो हाल पति-पत्नी के रिश्ते का भी होता है।

पत्नी उम्रभर पति की इच्छाओं के चारों ओर घूमती रहती है –

थोड़ा समय, थोड़ा प्यार, थोड़ा सम्मान चाहती है।

लेकिन पति, अपने घरवालों की इच्छाएँ पूरी करने में लगा रहता है,

पत्नी की अनदेखी को ही अपना पारिवारिक धर्म समझता है।


फिर एक समय आता है,

परिवार के लोग अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त हो जाते हैं,

उनकी इच्छाएँ भी बदलने लगती हैं,

और पति-पत्नी की उपेक्षा करने लगते हैं।

धीरे-धीरे उम्र ढलने लगती है,

इच्छाएँ मरने लगती हैं,

और समय सिमटने लगता है।


तभी पति को पत्नी की याद आती है,

उसकी अधूरी इच्छाओं की याद आती है।

वह कहता है –

“चलो लौट चलें पुराने वक्त में,

मैं तुम्हारी सारी इच्छाएँ पूरी कर दूँ।”


शायद इच्छाएँ अब भी पूरी हो जाएँ,

लेकिन वो समय,

वो सम्मान,

वो हर पल का अपमान –

वो सब कैसे वापस आएगा?


क्योंकि जो वक्त बीत जाता है,

वह लौटकर कभी नहीं आता।

यही है पति-पत्नी के रिश्ते की सच्चाई।

Alpna singh 


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